राहुल गांधी ने महासमुंद चुनाव से ठीक पहले मतदाताओं को इन आदर्शों की कोशिश की थी कि ‘एक हैं तो सुरक्षित हैं’ का असली मतलब है। वो मोदी और अडानी के रिश्ते को बेरोजगारी बनाना चाह रहे थे। लेकिन, डिजिटल पोल के रुझान बता रहे हैं कि महा बोल्टन और झारखंड में वोटरों की बात उनकी समझ में नहीं आ रही है। आज गुरुवार को जिस तरह से राहुल गांधी आक्रामक थे. राहुल गांधी ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ग्रेटर नोएडा में गौतम अडानी के साथ मिले हैं. उन्होंने अमेरिका में रिश्वतखोरी के आरोप के बाद उद्योगपति की दलाल की मांग की। राहुल गांधी ने कहा कि अडानी 2,000 करोड़ रुपये के मालिक और कई अन्य मामलों में नाम के बावजूद घूम रहे हैं क्योंकि उन्हें मोदी द्वारा संरक्षित किया जा रहा है। सवाल यह है कि राहुल गांधी जिस तरह के हमले कर रहे हैं क्या वह एक आम आदमी हैं, समझ रहे हैं कि क्यों नहीं कर रहे हैं? आइये देखते हैं कि वो कौन से कारण हैं कि राहुल गांधी अडानी राग के लिए जनता से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं।
1- कांग्रेस सरकार वाले निवेशकों में अडानी का निवेश होना
असल में एक तरफ तो राहुल गांधी, अडानी और नरेंद्र मोदी के बीच सांठगांठ होने का आरोप है, दूसरी तरफ नीना की पार्टी के लोग अडानी की जय-जय करते हैं। राहुल का कहना है कि अडानी ने मोदी सरकार को हाईजैक कर लिया है। जब आम लोग देखते हैं कि कांग्रेस के मुख्य मंत्री खुद अडानी का स्वागत करते हैं और उन्हें अपने राज्य में निवेश के लिए लालायित रखते हैं तो जनता को यह विरोधाभास पसंद नहीं आता है। राजस्थान के मुख्यमंत्री बने अशोक अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने धर्मशाला ने और कर्नाटक की कांग्रेस ने हजारों करोड़ रुपये का निवेश अडानी से किया है। हाल ही में बनी तेलंगाना सरकार ने भी कई हजार करोड़ का निवेश निवेश किया है, मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की सरकार ने अडानी से 100 करोड़ का दान भी लिया है।
2- जिन राज्यों को रिश्वत देने का आरोप उन पर बीजेपी का एक भी नहीं
अडानी का आरोप है कि उसने एक अमेरिकी फर्म एज्योर पावर के साथ मिलकर जुलाई 2021 से फरवरी 2022 के बीच ओडिशा (बीजद गठबंधन), तमिल (डीएमके निगम), छत्तीसगढ़ (कांग्रेस) और आंध्र प्रदेश (डब्ल्यूएएसआरसीपी गठबंधन) में वितरण कंपनियों को बंद कर दिया है। 26 करोड़ डॉलर का भुगतान. भारतीय जनता पार्टी के नेता अमित डेमोक्रेट ने कांग्रेस को घेरते हुए कहा कि ‘यहां जिन राज्यों की बात की गई है, वे सभी उस समय के रिपब्लिकन कांग्रेस या उसके सहयोगियों द्वारा गठित थे। इसलिए कांग्रेस को उपदेश देना चाहिए और कांग्रेस और उसके सहयोगियों को बच्चों की जानकारी मिलनी चाहिए। इसके अलावा, कोई भी भारतीय अदालत वैध आधार पर अमेरिकी फर्म पर बाजार तक पहुंच बनाने के लिए अमेरिकी अधिकारियों पर रिश्वत देने का आरोप लगा सकती है। भाजपा नेताओं ने कहा कि वे लालची नहीं हैं। संसद सत्र और डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद से ठीक पहले इस कार्रवाई पर कई सवाल उठाए जाते हैं। कांग्रेस को जॉर्ज सोरोस और उनके गुटों के हाथों की कठपुतली नहीं मिलनी चाहिए।
3-विपक्षी विचारधारा में अडानी को लेकर राहुल गांधी जैसी रुचि नहीं
उद्योगपति गौतम अडानी पर हमला करने के मामले में राहुल गांधी नितांत अकेले पड़ गए हैं। उनके साथ देने के लिए कांग्रेस में भी डरे हुए लोग ही रह गए हैं। नामांकन तो अदानी का नाम भी नहीं लेता है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि अडानी का नाम लेने के बाद नेताओं से लेकर राहुल गांधी तक का नाम सामने आ जाता है. अगर आपको याद है तो नॉमिनेशन के पहले इंडिया अलायंस के शुरूआती दिनों की एक मीटिंग में राहुल ने नामांकन के नेताओं की मंजूरी के लिए अडानी की एस्टॉप पीसी के दौरान बिना उठाये दिया था। इसी बात को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एतराज से मुलाकात की थी. उन्होंने इसका विरोध स्वरूप अगली बैठक में हिस्सा भी नहीं लिया था. असली अडानी के खिलाफ अभी तक कोई ठोस मामला राहुल गांधी उठा नहीं सके हैं। अभी तक अडानी के खिलाफ जब-जब संकट आया है देश की जनता को ही नुकसान हुआ है। इसके पहले जॉर्ज सोरोस की संस्था हिंडनबर्ग यह काम कर रही है। सोरोस फ्रैंक स्विकर दूसरे देशों के बाजारों में अपना काम कर रहे हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में वह यह काम कई बार कर चुके हैं। हिंडनबर्ग के नेतृत्व में कई बार लाखों भारतीय अजातशत्रु के नुकसान का भुगतान किया गया। कारण है कि राहुल गांधी के अडानी विरोध का कांग्रेस पार्टी आज तक लाभ नहीं उठा पाई है।
4-अडानी और मोदी के बीच राहुल गांधी की आलोचना, उन्हें कथित तौर पर गांधी परिवार और रथयात्रा के बीच नहीं बताया
राहुल गांधी के पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की राजनीति खत्म होने में सबसे बड़ी भूमिका बोफोर्स घोटाले की थी। इस डील में टोकनी खाने वालों का एक नाम क्वात्रोची का भी था। 1974 के आसपास मोलिनारी नामक एक इटालियन ने क्वात्रोची को राजीव गांधी और सोनिया गांधी से मिलवाया था। उसके बाद क्वात्रोची फैमिली राजीव गांधी और सोनिया गांधी से मुलाकात करने लगे। दोनों के बच्चे अक्सर एक-दूसरे से मिलते थे। उस समय राजीव गांधी इंडियन एयरलाइंस में पायलट थे। राजीव गांधी रसायन शास्त्र में वित्त मंत्री वी.पी. सिंह ने कहा था कि क्वात्रोची ने उनसे मिलने के लिए कई स्टूडियो से समय मांगा था, लेकिन उन्होंने उन्हें कोई समय नहीं दिया। इसके बाद राजीव गांधी ने उनसे क्वात्रोची से मुलाकात के लिए कहा था। इन आरोपों में सरकारी कर्मचारियों, राजनेताओं और क्वात्रोची के बीच संबंध बहुत स्पष्ट रूप से सामने आए। करने में लगी हुई है. यही कारण है कि आज तक जनता के सामने अडानी विलेन नहीं बन सके।
5-राफेल मुद्दे पर राहुल गांधी को मुंह की खानी पड़ी थी, अन्य उद्योगपतियों पर भी आरोप लगा रहे हैं
राहुल गांधी केलल अडानी को ही उत्पाद नहीं बना रहे हैं। वो देश के चुनिंदा उद्योगपतियों को कोसने का काम पहले भी कर रहे हैं। राफेल विमान सौदे के समय वह अनिल अंबानी के पीछे गए थे और यहां तक कहा था कि पीएम मोदी ने आम जनता का पैसा अपने हाथों से अनिल अंबानी की जेब में डाल दिया है। इसी तरह किसान आंदोलन के समय तीन नए कृषि कानून बनाने के पीछे गौतम अडानी के साथ मुकेश अंबानी का नाम लिया गया था। राहुल का आरोप था कि मोदी सरकार ने इन कृषि उद्यमों के माध्यम से किसानों की जमीन खरीदने वाले अडानी और अंबानी को कंपनी में भर्ती कराया है। हालाँकि राफेल विमान सौदे में उन्हें मुँह की खानी पड़ी। इतना ही नहीं मामला राफेल में सुप्रीम कोर्ट के हिटलर से बचने के लिए उन्हें माफ़ी भी माँगनी पड़ी थी।
और, जब-जब राहुल गांधी अडानी को लेकर बीजेपी और पीएम मोदी पर आरोप लगाए गए हैं, तो बीजेपी की तरफ से पलटकर यही कहा जाता है कि देखो, कौन बोल रहा है। जो भाईचारा के मामले में खुद को जमानत पर छूट दी गई है। ऐसा खुलासा भर से होता है राहुल गांधी की सारा नैरेटिव धाराशायी। वाॅल्ड, लोगों को राष्ट्रीय हरा संग्रहालय की संपत्ति के मामले में अच्छी तरह से याद किया जाता है। राहुल गांधी और सोनिया गांधी की जमानत पर क्या हुआ? इसके अलावा गांधी परिवार पर पूर्व में प्रवचनाचार के आरोप याद दिलाये जाते रहे हैं। कुलमिलाकर, मोदी को दागदार साबित करने के लिए राहुल का बेदाग न होना भी अड़े आ रहा है।